हम इंसान इतने अज्ञानी और अहँकारी होते हैं कि अपने उपभोग के लिए, बुद्धि और बल से जानवरों को बंदी बनाकर उनका शोषण करते हैं और नाम देते हैं कि हम उनका पालन कर रहे हैं। जब जानवरों की देख-रेख या इस्तेमाल, इंसानी उपभोग के लिए किया जाता है तो इसे पशु पालन (Animal Husbandry) कहते हैं। इस ब्लॉग में हम पशु पालन की क्रूरता और जानवरों को इससे कैसे बचा सकते हैं? इस बारे में जानेंगे। 

लेकिन इस विषय पर बात करने की जरूरत ही क्या है? 

भारत में हर साल लगभग 260 करोड़ चिकन, 90 लाख मवेशी, 5 करोड़ बकरी, 96 लाख सूवर, और 2 करोड़ से भी अधिक भेड़ों को उनके माँस के लिए काटा जाता है। पशु उत्पाद जैसे – दूध, माँस, अंडा, चमड़ा इत्यादि का हम उपभोग कर सकें इसीलिए जानवरों को प्रताड़ित किया जाता है। 

पशु पालन कि शुरुआत कैसे हुई? – How Animal Husbandry Started in Hindi

रिसर्च के अनुसार आज से लगभग 10,000 साल पहले दूध, माँस, चमड़ा इत्यादि के लिए पशुओं को पालने कि प्रथा शुरू हुई थी, खासकर ऐसे पशुओं को पाला जाता था जो की घाँस या फिर अनाज खा सकें क्यूंकि माँसाहारी जानवरों को पालना और संभालना बहुत महँगा पड़ता। 

गाय 

ओरोच (Aurochs), गाय के पूर्वज हैं। ओरोच जंगली प्राणी थें जो की घाँस खाया करते थें, आज से लगभग 10,000 साल पहले हम इंसानों ने दूध और खेती के लिए इन जानवरों को पालना शुरू किया, उस समय इनका (गाय के पूर्वज) थन बहुत छोटा हुआ करता था, उसके बाद समय के साथ हमने ओरोच के विभिन्न प्रजातियों का आपस में अभिजनन करके गाय को अस्तित्व में लाया ताकि अधिक से अधिक दूध, माँस, चमड़ा जैसे अन्य पशु पदार्थ को उनसे nikala जा सके। 

मुर्गी 

अंडा और माँस के लिए मुर्गी पालन बड़े पैमाने पर होता है लेकिन इसका अस्तित्व प्राकृतिक तरीके से नहीं हुआ था बल्कि आज से लगभग 10,000 साल पहले माँस, अंडा, और पंख के लिए रेड जंगलफाऊल (red junglefowl) नामक पक्षी का पालन शुरू किया गया, समय के साथ रेड जंगलफाऊल के अन्य प्रजातियों का आपस में अभिजनन कराया गया और मुर्गी अस्तित्व में आने लगी, आज मुर्गी सिर्फ अंडा और माँस देने कि मशीन बनकर रह गयी है। 

बकरी 

आज के समय में बकरी का इस्तेमाल मुख्य रूप से माँस और चमड़े के लिए किया जाता है लेकिन इसका भी अस्तित्व प्राकृतिक तौर से नहीं हैं बल्कि आज से हजारों साल पहले पसंग (Pasang) नामक जंगली पशु को माँस और चमड़े के लिए पाला जाने लगा और समय के साथ अभिजनन से बकरी अस्तित्व में आ गयी। 

भेंड़ 

ऊन के लिए हम करोड़ों भेड़ों का शोषण करते हैं, भेंड़ का अस्तित्व मौफलन (Mouflon) नामक पशु से है। आज से हजारों साल पहले हम इंसानों ने ऊन, दूध, और माँस के लिए मौफलन (Mouflon) जो की एक जंगली जानवर था इसका पालन शुरू किया उसके बाद इनका अभिजनन करके भेंड़ को अस्तित्व में लाया गया। 

ऊपर बताए गए जानवरों के अलावा भी ऐसे कई पशु हैं जिनका करोड़ों कि सँख्या में पालन किया जाता है ताकि हमारी अंधी भोग की कामना शांत हो सके; हालाँकि फिर भी हमारी कामना शांत नहीं होती। 

हमारी कामना से शोषित जानवर: 

  • ऊँट 
  • खरगोश
  • मधुमक्खी 
  • बत्तख
  • मछली
  • गधा
  • भैंस
  • खच्चर
  • कबूतर, इत्यादि 

रिसर्च के अनुसार जानवर भी हमारी तरह ही दर्द, डर, अकेलापन, इत्यादि भावनाओं को महसूस करते हैं बस किसी में कम तो किसी में थोड़ा ज्यादा होता है, हम उनकी कोमल भावनाएँ जैसे उनका प्रेम, अपनापन, भोलापन, पारिवारिक मूल्यों को जरा भी सम्मान नहीं देते हैं। जिस तरह चावल-गेहूँ की खेती होती है वैसे ही आज करोड़ों की सँख्या में इन मासूम पशुओं की खेती की जाती है, हमारे अंधे स्वार्थ के लिए। 

आजाद जीना और “अपना वस्तुकरण न होना”, ये सभी जीवों का मौलिक अधिकार है और ये दोनों अधिकार हम जानवरों से छीन लेते हैं, इसे ही पशु शोषण कहा जाता है। कई लोग पशुओं के ये दोनों अधिकार छीनकर उन्हें पालते हैं इसलिए यह पालन नहीं बल्कि स्वार्थ के लिए पशुओं के अधिकार का हनन है। 

हम इंसान पिछले कई हजारों साल से अपनी सुविधा अनुसार, चयनात्मक प्रजनन और अन्य हेर-फेर के माध्यम से जानवरों की आबादी बढ़ाकर उनका शोषण कर रहे हैं और नाम देते हैं की हम जानवारों को पालते हैं। 

पशु पालन के नाम पर, 80 अरब ज़मीनी जानवरों को सालाना खिलाना और मार देना। फिर सालाना इसी चक्र को दोहराते रहना इंसान के भोग के लिए… ये पर्यावरण के विनाश के सबसे बड़े कारणों में से एक है। 

अब हमारे लिए समस्या यह है की किस तरह से पशुओं का शोषण समाप्त किया जाए ताकि वे अपनी आजाद जिंदगी जी सकें। 

समस्या का समाधान क्या है?

1) सबसे पहले सभी को पशु पालन और इसके पीछे हो रही क्रूरता से जागरूक होना होगा। 

2) अपनी गैरजरूरतों और जानवरों की पीड़ा को समझना होगा। 

3) वनस्पति आधारित उत्पाद, पशु उत्पाद के अच्छे विकल्प हैं; हमें इसे अपने जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा इससे पशु उत्पाद की माँग कम होगी जिससे पशु क्रूरता धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी। 

अपने खाने से लेकर मनोरंजन तक पशु उत्पाद और पशु शोषण के निषेध को वीगनवाद कहते हैं, जो व्यक्ति वीगनवाद जीवनशैली को अपनाता है उसे वीगन कहते हैं। 

तो कुल मिलाकर यदि पशु शोषण समाप्त करना है तो हम सभी को वीगन बनना होगा। 

अगर हम सब जानवरों की जगह पौधे आधारित उत्तपाद का इस्तेमाल करेंगे, तो इससे पृथ्वी का भी संरक्षण होगा, क्यूंकि पशु उत्पादों की तुलना में सिर्फ 10-20% संसाधन (जैसे पानी, जंगल, ऊर्जा इत्यादी) इस्तेमाल होंगे।

चौकाने वाले तथ्य :

यदि आप वीगन बन जाते हैं तो एक महीने में लगभग 15 जानवर और एक मानव जीवनकाल में हजारों जानवरों की जान बचा सकते हैं। इतना ही नहीं, एक महीने में आप औसतन 130 किलो CO2 उत्सर्जन रोक सकते हैं, 40 वर्ग मीटर जंगल और 60,000 लीटर पानी भी बचा सकते हैं।

अगर आप वीगन उत्पाद के बारे में जानना चाहते हैं तो इस ब्लॉग को पढ़ें : आपकी थाली में क्रूरता मुक्त विकल्प

लोगों के वीगनवाद से जुड़े कई सवाल होते हैं जैसे – अगर सभी वीगन बन गए तो पशुओं का क्या होगा? हम तो पशु शोषण नहीं करते तो पशु हत्या के जिम्मेदार कैसे हुए? ऐसे ही कई सवालों का जवाब आप यहाँ पा सकते हैं > वीगनवाद पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

नोट: उपरोक्त स्रोत प्रदान किया गया

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