पाठकों का योगदान

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प्रेम तुम पर हम खूब लुटाते हैं:-

दो रोटी देते हो तो, रखवाले घर के बन जाते हैं। सिर पर प्यार भरा एक हाथ फैराओ, तो प्रेम तुम पर भी हम खूब लुटाते हैं। 

जब एक डाल से दूजी डाल पर, उड़कर मैं बैठी हूँ, दिखा मनोहर दृश्य ये तुम्हारे मन में शांति भर जाती हूँ। मन मुदित होता है मेरा, तब गाने लग जाती हूँ – लेकिन अपने संगीत से, तुम्हे संगीतमय कर जाती हूँ।

जैसे तुम हो वैसे हम:-

जैसे तुम हो वैसे हम, जैसे हम है वैसे तुम। जीवन जैसे तुम्हारा है, वैसा ही हमारा है। 

हमारा भी तन है, हमारा भी मन है, प्रेम हम भी चाहते हैं, प्रेम की भाषा जानते हैं, जीने की एक आस है, हरी घास पर चलने की, पानी में गोते लगाने की, खुले गगन में उड़ने की, मन में हमारे प्यास है।

किसने दिया तुम्हें ये अधिकार:-

बताओ तुम्हे किसने दिया ये अधिकार, प्राण हमारे ले लेने का। या किया कोई अपराध हमने , तुम्हे कष्ट पहुंचाने का। याद मुझे बस इतना है, खेल रहा था मस्ती में, फिर ऐसा अहसास हुआ कि, पकड़ लिया किसी के हाथों ने। कोशिश की बहुत मैंने, छूटकर वहाँ से भागने की, पर उस कठोर मन के सम्मुख, मैं वहाँ पर बेबस था।

(फिर वह उसे एक भयानक स्थान पर ले जाता है।)

मन भय से भरा है मेरा, आँखें भी मेरी रो रही,
धड़कन कितनी तेज हैं मेरी, रूह भी मेरी काँप रही। उसने जोर से मुझको पकड़ा है, तन मेरा झट पटा रहा, चीख मेरी वो सुन नही पाया, जिसने हाथों में मुझको पकड़ा है। तड़प मेरी समझ वो भी ना पाया, जो ले जाने मुझको आया है। हाथ उसके नोच रहे हैं, मेरे सारे पंखों को, मेरी पीड़ा का अनुमान वहाँ, कोई लगा नही पाया।

मेरा क्रंदन किसने सुना होगा? वहाँ पाषाण हृदयी इंसान था। मेरे मन में एक सवाल सबसे पूछना चाहता था, मेरे जीवन से अधिक प्यारा, क्या तुम्हारी जिह्वा का स्वाद था?

फिर उनके हाथों अंत हुआ, एक और जीवन के अध्याय का।

लेकिन उसके जीवन के,
जो अंतिम क्षण थे भयावह ,
वो उसने सहे मानव , केवल तेरे कारण हैं।

अच्छा दाम मिला होगा, तुझको उसके मांस का ।
इसीलिए तो अंत कर दिया , तूने उसके जीवन का ।

( व्यंग्य)

तूने उसका अंत करके, सिद्ध किया के तू कोई इंसान नही।
ना चोर कोई तेरे जैसा, ना कृतघ्न कोई ।
ना दुष्ट कोई तेरे जैसा, ना दुराचारी कोई।
तूने थोड़े लोभ के कारण, मनुष्यता पर कलंक लगाया है ।
तूने थोड़े लाभ के खातिर, प्रेम को भी व्यापार बनाया है।
प्रेम का भी व्यापार बनाया है।

> निरंजना चोपड़ा – हरियाणा

मैंने जीना सीख लिया:-

खुली आँख तो पाया खुद को, किसी पुरानी टपरी मे। थी वह सहमी डरी हुई ,ना जाने किस आफत में। निकली जब वह टपरी से, मैं संग संग उसके निकल दिया।

किसी ने मारा पत्थर, किसी ने मुझको गोद लिया। हाँ देख लिया लोगों ने मुझको देख लिया। भर बोरी मुंह बाँध, मुख्य सड़क पर छोड़ दिया। मैं छोटा सा प्यारा पप्पी, ढूंढने माँ को निकल दिया। ना माँ मिली, ना भूख मिटी, कईयों ने दम तोड़ दिया। रोता रोता पहुँचा कचरे पर, हाँ मैंने खाना ढूँढ लिया। हाँ! ढूँढ लिया आवारा हो गलियों में, बासी खाना ढूँढ लिया।

हाँ! सीख लिया, मैंने जीना सीख लिया। जिसने मारा पत्थर, मैंने उसको भौंक दिया। हाँ! चाय समोसे की टपरी पर, दुम हिलाना सीख लिया। हाँ! लोगों के पत्थर खा-खा के, मैंने भूखा रहना सीख लिया।

कुत्ता-कुत्ता कहते सब, मैंने कुत्ता सुनना सीख लिया। हाँ! लोगों के मुख से मैंने, लोगों को कुत्ता कहते देख लिया। हाँ! लोगों के जीवन से, मैंने अपना जीवन सीख लिया। हाँ! जीवन के हर पहलू से, मैंने अपना जीवन सीख लिया।

नवजात बछड़ा:-

महिनों से कोख मे, ये कहाँ आ गया हूँ।
जकड़ झटपटाहट से, आजाद हो गया हूँ।
देखा अपनापन-सा उसमें, वह मुझको ही चाट रही। हुआ मैं थोड़ा दूर, तो कोई रस्सी उसको तान रही।

हमारे जैसा तो नहीं लगता, ये कौन दो पैर पर चला आ रहा है। खैर छोड़ो स्वागत तो देखो, दरिया तेल आ रहा है। गले में माला, नहीं यार रस्सी है, खूंटा गड रहा है। अभी-अभी तो खड़ा हुआ, यह मुझे घसीट रहा है।

पास होकर भी दूर, कभी साथ नहीं रहता।
खुली हवा में, मगर कभी खुला नहीं करता। मेरे हिस्से का दूध, मुझे ही नहीं मिलता। यह कहानी सिर्फ मेरी है, या किसी को नहीं मिलता।   

> अंकित दांगी – मध्य प्रदेश

हम होंगे कामयाब:-

हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन 

हो हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन। होंगे वीगन चारों ओर होंगे वीगन चारों ओर, होंगे वीगन चारों ओर एक दिन 

हो हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास होंगे वीगन चारों ओर एक दिन। सब चलेंगे अहिंसा के साथ, सब चलेंगे अहिंसा के साथ, डाल हाथों में हाथ सब चलेंगे अहिंसा के साथ एक दिन 

हो हो हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास सब चलेंगे अहिंसा के साथ एक दिन। नहीं भय किसी का आज, वीगन बनेगा पूरा समाज, वीगन बनेगा पूरा समाज। हो हो हो मन में है विश्वास, वीगन बनेगा पूरा समाज एक दिन

नहीं क्रूरता किसी के साथ, सब करेंगे पशुओं से प्यार सब करेंगे पशुओं से प्यार, हो हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास सब करेंगे पशुओं से प्यार एक दिन।हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन हो हो हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास।

> संजय राठौड़ – मध्य प्रदेश 

मनुष्य का सफ़र अहिंसा के साथ:-

जानकर अनजान बनकर जानते कुछ नहीं इससे बड़ी मूर्खता मैंने देखी नहीं 

कैसे छुपा जाते हो सच्चाई इनकी दर्द भरी कह रहा हूँ दर्द थोड़ा अब कहा जाता नहीं 

मानता हूँ थोड़ा कठिन है पशु पदार्थ छोड़ना धीरे धीरे चलो तो सही पार होगा रास्ता 

जिंदगी का सत्य है अंत में मर जाएगा तेरा किया अच्छा बुरा साथ वहीं जाएगा कहती है गीता कुरान भी धर्मों का यही सार है

जो सत्य है वह सत्य है वह ना टाला जाएगा तेरा किया धार्मिक कर्म ही साथ में जाएगा धन दौलत जो कमा रहा तू छोड़ यही पर जाएगा नई जगह पर नये सिरे से नया घर बसायेगा तेरा किया अच्छा बुरा ही साथ में जायेगा

फैसला आपको करना हैं, हिंसा या अहिंसा:-

क्या ज़मी क्या आसमाँ ढूँढ लिया जहाँ
क्या यहाँ क्या वहाँ ढूँढता ही फ़िर रहा
साथ दे ना रहा दूर वो भी जा रहा

सोचता ही चल रहा जाऊँ मैं किसके यहाँ
एक दिन राह में अजनबी से मिला
बेज़ुबानों के लिए उनके हृदय में प्रेम था
नाम जब पूछा तभी वीगन शब्द था सुना

पशु क्रूरता देखकर पशु पदार्थ छोड़ना
कहते हैं बहुत लोग दूध में हैं शुद्धता
एक बात मेरी यारों ध्यान से सोचना
खेती कर रहे हों तुम ट्रेक्टरो से बोलना
उसके बाद नर बछड़ों के साथ में क्या हो रहा

कम दूध दे रहीं तो गायों को छोडऩा छोडकर बेसहारा फिर मंदिरों में पूजना कूड़ा खाकर मर रही हैं आज बीच राह पर जानकर अनजान बनकर तुम कुछ ना बोलना भैंस क्या सुखी रहतीं है उनके विषय में जान लो दूध अधिक छीना करते पर उसके बच्चे को एक बूंद नहीं

जो बच्चा दूध नहीं देता मारकर उसको वहीं खाल में भूँसा भरकर फ़िर लटका दिया जाता कहीं भैंस जब बुढ़ी हुई या मरगई फिर कभी कोई सम्मान मिलता नहीं बूचड़खाने ही भेजी गई फैसला आपको करना है हिंसक या अहिंसक बनना है पशुओं से प्रेम निभाना है या मारके उनकों खाना हैं फैसला आपको करना है फैसला आपको करना है

आप अकेले नहीं जगत में, हम भी हैं:-

आप अकेले नहीं जगत में, हम भी प्रभु को जपते हैं. आप अकेले डरते नहीं, हम भी मृत्यु से डरते हैं. आप अकेले नहीं प्रेम निभाते, हम भी प्रेम निभाते हैं. आप अकेले रोते नहीं, हम भी रोया करते हैं. आप अकेले खुश ना होते, हम भी होया करते हैं. आप अकेले दुःखी ना होते, हम भी होया करते हैं. आप अकेले नींद ना लेते, हम भी सोया करते हैं. आप अकेले महसूस ना करते, हम भी किया करते हैं. आप अकेले खाते नहीं, हम भी खाना खाते हैं. आप अकेले नहीं विचारते, हम भी सोचा करते हैं.

हम दोनों में फर्क़ सिर्फ इतना
आप स्वार्थ से मारा करते हो, हम निस्वार्थ मर जाते हैं.

> संकल्प जैन  – मध्य प्रदेश 

पतंग एक सजा :-

यह वही पतंग और मांजा है, जिससे हम बहुत मस्ती करते है, उड़ाते है और हमें बहुत मज़ा आता है लेकिन हम अपने मज़े कि वजह से जानवरों के दर्द को नज़र अंदाज़ कर देते हैं।

 

अभी मैने एक गाय को देखा जिसे हम गौ माता भी कहते हैं उसका पैर कटा हुआ था, पैर में यह मांजा अटका हुआ था और उसका पैर हल्के-हल्के कटता जा रहा था फिर उस मांजे को निकाला गया, वह मांजा तो निकल गया पर उसके पैर में घाव बन गया। चोट लगने पर दर्द जितना हमे होता है, उतना ही इन्हे भी होता है। जब हमें चोट लगती है तो हम दवाई से और घर पर आराम करके घाव ठीक कर लेते है लेकिन उन बेजुबानो के पास न दवाई है और न ही वो आराम कर सकते हैं क्योंकि उन्हें जीने के लिए हर समय खाना ढूँढने जाना होता है।

यह तो थी एक गाय की बात पर ऐसे लाखों कई बेजुबान पक्षी हैं जो आसमान में उड़ते हैं, अक्सर इस मांजे से ये बेजुबान घायल हो जाते हैं और फिर न तो वो उड़ पाते हैं और न ही अपना खाना ढूंढ़ने जा पाते है जिस वजह से वो तड़पते-तड़पते मर जाते हैं और उनका तो ख्याल रखने के लिए भी कोई नही होता ।

आजकल बिना किसी मतलब के कोई किसी की मदद कहाँ ही करता है, खासकर इन बेजुबानों कि तो बिल्कुल नही क्योकि इंसानो को लगता है कि ये अपना दर्द कह नहीं पाते तो इसका मतलब इन्हें दर्द ही नही होता लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि हम उनका दर्द समझ ही नहीं पाते। 

इसलिए कृपया मजे करते हुए ये न भूले कि ये दुनिया सिर्फ हमारे लिए नहीं बनी है जितना हक हमारा है आजादी से जीने का उतना ही हक जानवरों का भी है।

> अज़रा अंसारी – उत्तर प्रदेश 

बेज़ुबानों से भी प्यार करो:-

अगर प्यार करके प्यार ही पाना है
तो उन बेजुबान जानवरों से करो
देखना दोगुना प्यार मिलेगा तुम्हें
बस उनपे थोड़ा ऐतबार तो करो

जानवर और इंसान की हालत एक जैसी:-

बेजुबान की ज़ुबान बंद करना एक रीत सी है वो इंसान हो या जानवर हालत एक जैसी है जानवर को दर्द हो तो वो बोल नहीं पाता फर्क इतना है इंसान चीखना है जानता

> अन्नदा दाश  – ओडिशा