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भारतीय संस्कृति कुछ मूल्यों पर चलती है जैसे – आध्यात्मिकता, अहिंसा, नैतिकता, एकता इत्यादि। वीगनवाद, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, भारतीय संस्कृति में इसे अहिंसा सिद्धांत का अभिन्न अंग समझा जा सकता है। हम इस लेख में जानेंगे की भारतीय संस्कृति वीगनवाद से कैसे जुडी है। 

आज के समय में पशु क्रूरता का दर पिछले कुछ दशकों के मुकाबले बहुत अधिक बढ़ गया है और इसका मुख्य कारण हैं हमारी उपभोग करने की ख़त्म न होने वाली कामना। हम पशु उत्पाद का उपभोग कर सकें सिर्फ इसके लिए पशु उद्योग द्वारा प्रतिदिन करोड़ों पशुओ को प्रताड़ित किया जाता है और अंत में उन्हें मार दिया जाता है। 

पशु क्रूरता को रोका जा सके इसीलिए आज के समय में लोग वीगन जीवनशैली को अपना रहे हैं और वीगन बन रहे हैं। 

वीगन कौन है और वीगनवाद क्या है?

‘वीगनवाद’ का अर्थ है किसी भी पशु उत्पादों का उपयोग न करना जैसे – मांस, अंडे, डेयरी उत्पाद, रेशम, चमड़े आदि और मनोरंजन या किसी अन्य काम के लिए जानवरों का शोषण न करना। वीगनवाद एक अहिंसक दर्शन है और इसे जीने वालों को ‘वीगन’ कहते है।

पशु क्रूरता को समाप्त किया जा सके इसके लिए 1944 में डोनाल्ड वाटसन ने वीगन (Vegan) पहल को शुरु किया था, वे एक पशु अधिकारी कार्यकर्ता और द वीगन सोसाइटी के सह-संस्थापक थें। वीगन (Vegan) शब्द बना है शाकाहारी (Vegeterian) के अंग्रेजी शब्द से। 

भारतीय संस्कृति और वीगनवाद

आज भारत समेत दुनिया के कई देशों में लोग विगनवाद पहल को तेज़ी से अपना रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि वीगनवाद एक नयी सोच है लेकिन इसकी शुरुआत हजारों साल पहले ही हो चुकी थी भारतीय संस्कृति में अहिंसा  सिद्धांत के रूप में। 

श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण के वाक्य हैंअहिंसा परमॊ धर्मः अर्थात अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। 

भारतीय संस्कृति का उद्गम धार्मिक मर्म से होता है और धर्म का मर्म है “अहिंसा”, खुद के प्रति और सभी जीवों के प्रति। धर्म हमें यही सिखाता है की किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुंचाए और वीगनवाद भी इसी मर्म का पक्षधर है। 

संस्कृति का अर्थ होता है सम्यक कृति यानी सही काम। हम इंसान समाज बनाकर रहते हैं इसलिए सभी के लिए यह जरुरी हो जाता है की लोग सही विचार पर चलें ताकि सामाजिक संतुलन बना रहे इसलिए संस्कृति को बनाया गया। 

भारत में 30% लोग शाकाहारी हैं जो की दुनिया में किसी अन्य देश के मुकाबले सबसे अधिक हैं हालाँकि शाकाहार में भी पशु उत्पाद के रूप में हिंसा शामिल है लेकिन इसमें मांस और अंडे जैसे पशु पदार्थ निषेध हैं। 

आज शाकाहारी और माँसाहारी, पशु पदार्थ को त्याग कर वीगन जीवनशैली को अपना रहे हैं। भारतीय धर्मों की शुरुआत होती है वेदों से और वेदों में अहिंसा को मूल माना गया है। वेद कहते हैं की हम इंसानों को किसी भी प्राणी को कष्ट पहुँचाने का कोई अधिकार नहीं है। 

और आज हम वीगनवाद को भी एक अहिंसक जीवनशैली के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं इस बात से हम समझ सकते हैं की वीगनवाद भारतीय संस्कृति का एक विस्तृत रूप हैं। 

लेकिन आज के समय में लोग संस्कृति का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं और धार्मिक मर्म के बजाये अपने ढंग से चला रहे हैं। कुछ जगहों पर हिन्दू संस्कृति के नाम पर जीवों की बली दी जाती है जो की बहुत बड़ा पाप है और भारतीय संस्कृति इसका समर्थन नहीं करती है।

भारत में, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अनुयायियों ने भी सदियों से भारत में वीगनवाद के एक रूप की वकालत और अभ्यास किया है, इस विश्वास के साथ कि मनुष्यों को अन्य बेजुबान जानवरों को दर्द नहीं देना चाहिए। यहां तक कि हिंदू धर्म भी वीगनवाद जीवन शैली की वकालत करता है, जिसमें कई जानवर देवताओं के रूप में माने जाते हैं।

कबीर साहब भी पशु उत्पादों का खुलेआम विरोध करते थें। सही धर्म और संस्कृति भी वही है जिसके मूल में अहिंसा हो। 

वीगनवाद कोई रुझान नहीं है की सभी लोग वीगन बन रहे हैं तो हम भी बन जाते हैं बल्कि यह एक जीवनशैली है जिसमे सभी पशुओं के प्रति दयालुता का नजरिया रखा जाता है और उनका इस्तेमाल इंसानों के उपभोग के लिए किसी भी तरीके से नहीं किया जाता है।

स्त्रोत:

https://en.wikipedia.org/wiki/Veganism

 

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