वीगनवाद से जुड़े प्रश्न

वीगनवाद से जुड़े प्रश्न

क्या वीगन पालतू जानवर रख सकते हैं?

वीगनवाद के हिसाब से हमे ना किसी जानवर का शोषण करना चाहिए और ना ही उनका दुरुपयोग करना चाहिए। तो अब इस प्रश्न के उत्तर के बारे में कई विचार और तथ्य है।

जैसे कि पहला तथ्य यह है कि क्या हमने उस जानवर को हमारे मनोरंजन के लिए पाला है? अगर हाँ तो यह गलत है क्योंकि जब हम इन्हें अपने मनोरंजन के लिए पालते हैं तो वह जानवर हमारे घर में कैदी बनकर रह जाते है। अगर आपके पास पालतू जानवर है तो उसकी स्वतंत्रता आप उससे छीन ना ले इसका भी ध्यान रखना है, क्योंकि वह जानवर उसका प्राकृतिक जीवन कहीं और अच्छे से जी सकता है। 

दूसरा विचार है की हमें वह जानवर कहाँ से मिला है? अगर आपने उस जानवर को खरीदा है तो, वह अनैतिक है क्योंकि जहाँ से आपने वह जानवर खरीदा है वहाँ जानवरों का व्यापार होता है। उनका अभिजनन (ब्रीडिंग) किया जाता है और वह बहुत क्रूर प्रक्रिया है। 

तीसरा विचार, आपने वह जानवर किस देश से लाया है? अगर हम उस जानवर को दूसरे देश से खरीद के लाए है, तो यह गलत है। हमारे जो स्थानीय जानवर है उनकी मदद करें, उन्हें अपनाएँ ।

वीगनवाद में पालतू जानवरों के बारे में इस तरह के कई विचार आते है परंतु पालतू जानवरों के बारे में ऐसा कोई कड़ा नियम नहीं है। अगर आपको कोई बेसहारा जानवर मिला है और आप उसका ध्यान रखना चाहते हैं तो रखें। परंतु किसी भी जीव को केवल अपने मनोरंजन और खुशी के लिए खरीदना गलत है। जानवर को अपने मनोरंजन के लिए खिलौना समझकर न रखें इस सभी में उस जानवर की भी खुशी होनी चाहिए और उनका ध्यान रखना भी हमारा दायित्व है। हम उन्हें कैसे पाल रहे हैं उसका भी काफी महत्व है, ऐसा नहीं की वो जानवर बीमार, बूढ़े और अपंग हो जाने पर उन्हें घर से निकाल दिया – यह गलत है।

वीगन होने के नाते, हम अपने पालतू जानवरों को क्या खिलाएँ?

आपने उस जानवर का ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली है तो आप उस जिम्मेदारी को अच्छे से निभाए। आप अपने पालतू जानवर को वह खिलाएं है जिसमें उसकी खुशी हो, जिससे वह स्वस्थ रहे। क्योंकि  वीगनवाद यह हम इंसानों के लिए है ना की जानवरों के लिए। 

परंतु अगर आप के पालतू जानवर को वीगन खाना खाने से कोई तकलीफ नहीं हो रही है तो आप उसे वीगन खाना दे सकते हैं, जैसे कि कुत्तों को वीगन खाने से कोई तकलीफ नहीं होती है, उनकी सेहत अच्छी बनी रहती है और उनका वीगन खाना बाजार में आसानी से उपलब्ध भी है। 

परंतु बिल्लियां यह प्राकृतिक रूप से वीगन खाना नहीं खा सकती क्योंकि उन्हें ‘टावरिन (अमीनो एसिड)’ चाहिए रहता है जो की उन्हें नॉनवेज खाने से ही मिलता है तो अगर हम बिल्ली को वीगन खाना देंगे तो उन्हें बहुत तकलीफ होगी और उनके सेहत के लिए भी अच्छा नहीं रहेगा। परंतु अगर आपको ऐसा कोई वीगन फूड मिल रहा है जिसमें ‘टावरिन (अमीनो एसिड)’ अलग से मिला हुआ हो और उससे बिल्ली की सेहत पर असर ना हो तो आप बिल्ली को वीगन खाना खिला सकते हैं। परंतु ध्यान रखे की वो बिल्ली आपकी जिम्मेदारी है तो उसके सेहत के साथ खिलवाड़ न करें। यह ध्यान में रखकर की आपने कौन सा जानवर पाला है, उस प्रकार का उसका खाना चुनें। 

जानवरों के मूलभूत अधिकार क्या होने चाहिए?

अब यह सवाल जब लोग पुछते है, तो वह उन जानवरों की बात कर रहे होते हैं जिन्हें ना वह मारते हैं, ना खाते हैं। परंतु वीगनवाद के हिसाब से तो सभी जीव एक समान है तो अगर आप जानवरों के मूलभूत अधिकारों की बात कर रहें हैं तो उसमें बकरी, मुर्गी, गाय और सुअर का भी समावेश होना चाहिए। परंतु लोगों के हिसाब से जिन जानवरों को हम खाते हैं उनके कोई मूलभूत अधिकार नहीं होते है और वह लोग सिर्फ उन जानवरों की बात करते है जिन्हें वह नहीं खाते तो यह दोगलापन है और इसे प्रजातिवाद कहते है। वीगनवाद के हिसाब से सारे जानवरों को उनकी जिंदगी प्राकृतिक तरीके से जीने दें, हम इंसानों को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें पीड़ित, शोषित ना करें। अगर आप कुछ करना ही चाहते है तो इतना करे की हर जानवर, जीव के साथ समान बर्ताव करें और उन्हें उनकी जिंदगी स्वतंत्रता से जीने दें।

क्या इंसान जानवरों को अपने मनोरंजन के लिए रख सकता है?

किसी भी संवेदनशील जीव को पिंजरे में कैद करके रखना, वह भी केवल अपने मनोरंजन के लिए यह गलत बात है। क्या आप कभी किसी इंसान को अपने मनोरंजन के लिए कैद करके रखने का सोच सकते हैं? नहीं सोच सकते क्योंकि यह हमें गलत लगता है, वैसे ही किसी भी जानवर को पिंजरे में कैद करके रखना गलत है, अनैतिक है। जैसे की मत्स्यालय में हम मछलियों को और तोते को पिंजरे में कैद करके रखते हैं जो कि उनके लिए प्राकृतिक नहीं है। वह अपना मानसिक संतुलन खोने लगते हैं। बात अगर मनोरंजन की है तो आजकल की टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ गई है की जैसे की एनिमेशन, ग्राफिक्स और भी ऐसी कई सारी टेक्नोलॉजी है जिससे हम मनोरंजन आसानी से पा सकते हैं। आजकल कई सिनेमाओं में असली जानवर इस्तेमाल नहीं होते है, अगर जानवर की जरूरत है तो उस जानवर के जगह पर स्पेशल इफेक्ट से वह जानवर बनाए जाते हैं।

तो जानवरों को अपने मनोरंजन के लिए इस्तेमाल करना बहुत ही गलत बात है। भले ही आप वीगन ना हो परंतु एक अच्छा इंसान होने के नाते आपको चिड़ियाघर, मत्स्यालय, सर्कस इन जगहों पर नहीं जाना चाहिए क्योंकि यहाँ  उन बेचारे जानवरों को बांध के, कैद करके रखा जाता है और वह भी सिर्फ इस वजह से क्योंकि हम पैसे देकर उन्हें देखने जाते है और यह बहुत ही क्रूर और अनैतिक है।

इंसान अपने उगाए हुए जानवरों को क्यों मार / खा नहीं सकता ?

कुछ लोग यह सोचते है की इन जानवरों को हमने ही कृत्रिम रूप से अभिजनन (ब्रीडिंग) करके पैदा किया है तो इन पर हमारा हक है, हम इनके साथ जो चाहे वह कर सकते हैं अगर उन्हें खाना है तो हम खा सकते है और इसमें किसी को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। परंतु लोग यह बात नही समझते हैं की जिनकी वो बात कर रहें है वह जिते जागते जानवर है, न की कोई लकड़ी की मेज या कुर्सी। यह जानवर संवेदनशील है, वह भी हमारी तरह भावनाएं महसूस कर सकते हैं। भले ही इन जानवरों को पैदा करने में आपने मदद की हो परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि आप उनका शोषण कर सकते हैं, उन्हें पीड़ा दे सकते हैं। एक इंसान होने के नाते हमारी नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है की कोई भी जीव जो हमारी तरह संवेदनशील है, उसे हम किसी भी तरह की हानि न पहुंचाएं क्योंकि उसकी रक्षा भी हमारी ही जिम्मेदारी है।

. जरूरत है जानवरों के रहन - सहन को बेहतर करने की, उनके ज्यादा कल्याण की।

कुछ लोग पशु कल्याण वादी का नजरिया अपनाते हैं। उन्हें पता है पशुओं के साथ गलत हो रहा है, क्रूरता हो रही है तो उनके हिसाब से अगर हम जानवरों के रहन – सहन को बेहतर कर दे तो इतना ही काफी है, उनके लिए सब ठीक हो जाएगा। परंतु क्या इतना सा करने से सब ठीक हो जाएगा?

जैसे की, पुराने जमाने में जब इंसानों को गुलाम बनाकर रखते थे तो कई कल्याण वादी का नजरिया रखने वाले लोग कहते थे की आप इन्हें गुलाम बना के रखो, बस उन्हें ६ से ८ घंटा सोने दो, अगर वो बीमार हो तो उसका इलाज कराओ उन्हें ऐसे मरने मत दो, उन्हें दो बार खाने को दे दो। तो यही सोच पशु कल्याण वादी का नजरिया रखने वाले लोगों की है वो यह नहीं कहते है की हम इन जानवरों को मार के नहीं खाएंगे बस जितनी भी छोटी सी इनकी जिंदगी है उस जिंदगी में उनको थोड़ा ज्यादा खाना दे दो, सोने की थोड़ी जगह दे दो और थोड़ी बड़ी जगह में रहने को दे दो तो इस तरह एक क्रूरता भरी प्रक्रिया को वो अच्छा रूप देने की कोशिश करते हैं। वो यह भी कहते है कि जब आप उन्हें मार रहे हो तो उन्हें तड़पाओ मत, उन्हें तुरंत ही मार दो।

क्या हमें चलेगा की कोई हमें कहे की, हम तुम्हें मारने वाले है पर तड़पा कर नहीं एकदम तुरंत ही मार देंगे। तो यह पशु कल्याण वादियों की सोच हैं। इस सोच से कोई मदद नहीं होगी, पशु क्रूरता और शोषण गलत है और इस पर पूरी तरह से रोक लगाई जानी चाहिए।

अब जब हम पशु कल्याण वादी की बात कर रहे हैं तो हम ऐसे व्यक्ति की बात कर रहें है जिसकी सोच ऐसी हो तो उसमें और जानवरों को बचाने वाले में बहुत फर्क है। जानवरों को बचाने वाले यह जानवरों से बहुत प्यार करने वाले, उनकी सेवा करने वाले हो परंतु यह हो सकता है कि वह प्रजातिवादी हो मतलब किसी एक दो जानवरों को बचाए और बाकी जानवरों को खाने वाले भी हो, या फिर यह भी हो सकता है कि वह वीगन हो जिनके लिए सभी जानवर एक समान हो।

क्या वीगन को विटामिन B12 की कमी होती है और क्या उन्हें बहुत सारे सप्लीमेंट लेने पड़ते है?

वीगन लोगों को बहुत सारे सप्लीमेंट लेने की कोई जरूरत नहीं है अगर आप अलग अलग प्रकार का संपूर्ण वीगन भोजन करें तो सारे पोषक तत्व इसी आहार में मिल जायेंगे सिवाय विटामिन B12 के। हमारे शहरी जीवन शैली और नए कृषि के तरीके कि वजह से विटामिन B12 की कमी लगभग ४७% लोगों में पायी जाती है और यह विटामिन जानवरों को भी नहीं मिल रहा है। तो सिर्फ वीगन लोगों में ही नहीं बल्कि लगभग सभी लोगों में विटामिन B12 की कमी पाई जाती है। जानवरों के अंदर भी यह इंजेक्शन के जरिए डाला जाता है, जब मांसाहारी उनका माँस खाते है तब उन्हें यह विटामिन मिलता है।

विटामिन B12 यह उन जीवाणु से बनता है जो की धूल,मिट्टी और मटमैले पानी में पाए जाते हैं। हमें मिट्टी से उगा हुआ अनाज, सब्जी खाने से विटामिन B12 मिलता था परंतु अब खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों और फर्टिलाइजर के वजह से मिट्टी में रहने वाले सारे जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। देखा जाए विटामिन B12 की इतनी भी आवश्यकता नहीं होती है अगर आपको हफ्ते में १००० से २००० माइक्रोग्राम (mcg) भी मिले तो बस है। आपको विटामिन B12 यह किसी भी सस्ती विटामिन की दवाई या फिर B कॉम्प्लेक्स की दवा से मिल जाएगा। अब तो बाजार में ऐसे भी कई वीगन उत्पाद है जिनमें विटामिन B12 पहले से मिलाया हुआ है तो ऐसा वक्त दूर नहीं जहाँ आपको अलग से विटामिन B12 लेने की जरूरत पड़े।

क्या वीगन आहार में हमें सब कुछ मिल जाता है?

वीगन आहार, वनस्पति आधारित आहार है। तो अगर आप हर तरह की सब्जी, फल, दाल, फलियां, सूखे मेवे इन सबका सेवन अच्छी तरह से करे तो आपको जिन पोषक तत्वों की जरूरत है वह सभी आपको आसानी से मिल जाएंगे परंतु आप सिर्फ दाल चावल या कोई एक ही तरह की सब्जी खायेंगे तो आपको पोषक तत्वों की कमी हो जाएगी क्योंकि वनस्पतियों में सारे तरह के प्रोटीन ,मिनरल्स यह फैले हुए हैं। तो आपको सभी तरह के सब्जी, फल, दाल का सेवन करने के बाद ही आवश्यक तत्त्व मिल पाएंगे सिवाय विटामिन D और विटामिन बी 12 के। विटामिन D यह आपको सूरज की रोशनी से मिल जाएगा और विटामिन बी 12 के लिए आप इसका सप्लीमेंट ले सकते हैं। इसके अलावा आपको हर तरह का पोषण वीगन आहार में मिल जाएगा।

वीगन को ज्यादा प्रोटीन कहाँ से मिलता है?

प्रोटीन के बारे में बहुत ज्यादा भ्रामक विपणन (डेसिपेटिव मार्केटिंग) किया हुआ है और उसमें हमें सिर्फ यह बताया गया है की अगर हमने प्रोटीन नहीं लिया तो हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। परंतु सच कुछ और ही है, देखा जाए तो आपको इतने प्रोटीन की भी आवश्यकता नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आपका वजन १०० किलो है तो आपको ८० ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता है। मतलब हर किलो के पीछे ०.८ ग्राम प्रोटीन की आवश्यक है। अगर आपकी जीवन शैली बहुत ही ज्यादा व्यस्त और सक्रिय हैं तो १० से २० ग्राम

प्रोटीन और अधिक लग सकता है और जो की आपको बड़ी आसानी से दाल, मशरूम, चने, सोयाबीन, ब्रोकली, मूंगफली से मिल जाएगा। आप जितना चाहें उतना व्यस्त और सक्रिय जीवन वीगन बनकर आसानी से जी सकते हैं।

क्या वीगन बनने के लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी है?

वीगनवाद यह वनस्पति आधारित आहार खाने की और एक ऐसी जीवनशैली जीने की बात है जो कि करुणा और दया से भरपूर हो। तो अच्छा खाना खाने के लिए और अच्छा जीवन जीने के लिए आपको किसी डॉक्टर की सलाह लेने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वनस्पति आधारित आहार यह सेहत के लिए बहुत अच्छा है। परंतु अगर आपकी स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो आप डॉक्टर की सलाह जरूर ले सकते हैं। परंतु बहुत सारी बीमारियां यह वीगन आहार के वजह से ठीक हो सकती हैं या नियंत्रण में लायी जा सकती हैं। जैसे कि डायबिटीज,उच्च रक्तचाप, कमजोर हड्डियां इत्यादि।

टाइप २ डायबिटीज वीगन आहार के वजह से बहुत हद तक ठीक हो जाती है या फिर पूरी तरह से खत्म भी हो जाती है।

उच्च रक्तचाप, २ से ३ हफ्तों में यह बीमारी बिल्कुल ठीक हो सकती हैं बस वीगन आहार खाने के साथ तेल भी कम करें।

बहुत सारे अध्ययन यह बताते हैं कि दूध और दूध के उत्पादों के अधिक इस्तेमाल के वजह से शरीर में काफी मात्रा में एसिड निर्माण होता है और आपकी हड्डियों से कैल्शियम खींचता है ताकि शरीर में अल्कलाइन का संतुलन बना रहे तो अगर आप दूध और दूध के उत्पाद कम करेंगे तो आपकी हड्डियां और मजबूत होंगी। इसी के साथ आप कसरत करें और शारीरिक काम करने के लिए हड्डियों का इस्तेमाल करें ताकि आपकी हड्डियां मजबूत बानी रहे।

क्या वीगन पशु परीक्षण किए हुए दवा खा सकते है?

तो इस बात में कोई संदेह नहीं है की दवा कंपनियों ने दवाई यह पशु परीक्षण करके ही बनाई होगी, शायद पहले किया हो और अभी भी करते हो इसलिए दवा क्रूरता मुक्त नहीं हो सकती। परंतु वीगनवाद कहता है की अगर बात आपके जान की हो और आप के पास कोई और विकल्प न हो तो वह दवा खाए। वीगनवाद में आपके जान को प्राथमिकता दी जाती है तो जो दवाई आपको डॉक्टर ने लिख दी है आप वो जरूर लें।

क्या वनस्पति प्रोटीन के मुकाबले, पशु प्रोटीन संपूर्ण होता है?

प्रोटीन हमारे शरीर में माँस-तंतु (टिश्यू), माँसपेशी (मसल्स) का निर्माण करता है और हमारे शरीर को मजबूत बनाता है। प्रोटीन २२ अमीनो एसिड से बना हुआ है, उसमे से १३ अमीनो एसिड हमारा शरीर खुद ही बना सकता है परंतु बाकी के जो ९ अमीनो एसिड है उन्हें आवश्यक अमीनो एसिड कहा जाता है क्योंकि वो हमारा शरीर बनाने में असमर्थ है, कई लोगों के हिसाब से केवल पशु प्रोटीन में ही वो ९ अमीनो एसिड मिलेंगे और वनस्पति प्रोटीन में नहीं तो यह गलत धारणा है। अगर आप मटर, सोया, या हेम्प का इस्तेमाल खाने में कर रहे हो तो आपको सम्पूर्ण प्रोटीन मिल जाएगा। ऐसा भी नहीं है की इन सभी में सभी अमीनो एसिड यह एक मात्रा में होते हैं।

इन सभी में अमीनो एसिड अलग अलग मात्रा में होते हैं और हमारे शरीर को भी अमीनो एसिड अलग अलग मात्रा में ही चाहिए होते हैं। हमारा शरीर यह बहुत ही परिपूर्ण है तो ऐसा जरूरी नही है की हम एक संपूर्ण प्रोटीन ही खाए। जैसे की अगर हमने दाल, रोटी खाई तो हमारा शरीर कुछ अमीनो एसिड वो दाल से ले लेगा और बाकी के रोटी से। वैसे भी हम जब भी खाना खाते है तो हम मेल मिश्रण कर के ही खाते हैं तो हमारा शरीर आवश्यक प्रोटीन को इन सब के मिश्रण से बना लेता है। अगर आपने बाजार या ऑनलाइन से वनस्पति आधारित प्रोटीन खरीदा है तो वो भी अलग अलग अनाजों के मिश्रण से बना हुआ होगा ताकि उसमें संपूर्ण अमीनो एसिड हो।

सोया की खेती से भी पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है।

यह सच बात है कि सोया खेती से पर्यावरण को नुकसान होता है। सोया यह दूसरे अनाज के मुकाबले बहुत पानी इस्तेमाल करता है और जब हम सोया को औद्योगिक या आनुवंशिक रूप से रूपांतरित करते है (GMO) तो सोया बहुत सारे टोक्सिन बनाता है क्योंकि इस खेती में बहुत सारे केमिकल्स इस्तेमाल होते है और इसका धरती पर बहुत खराब प्रभाव होता है इसलिए सोया यह पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है। परंतु यह बात जानकर आपको आश्चर्य होगा की हम जितना सोया उगाते है, उसका ७० से ८०% सोया पशु खेती में पशुओं के भोजन में जाता है ताकि यह पशु जल्दी बड़े हो जाए। तो अगर आपको पर्यावरण की इतनी ही चिंता है तो पहले पशु खेती बंद करनी होगी। वीगनवाद के बारे में एक और गलत धारणा है की वीगन लोग केवल सोया खाते है की, तो वीगन खाने में सोया यह एक चीज है अगर आपको पसंद है तो खाएं और ना पसंद हो तो न खाए आपके पास और भी कई विकल्प है जैसे की सब्जियां, फल, दाल इत्यादि। एक और गलत धारणा है की वीगन खाने में सबसे ज्यादा प्रोटीन यह सोया से आता है। अगर आप बाजार या ऑनलाइन साइट्स पर देखे तो ८०% वीगन प्रोटीन यह सोया फ्री होता है। तो वह प्रोटीन गेहूं, चने और अलग अनाज से आता है। तो यह बहुत ही गलत धारणा है की वीगन बहुत ज्यादा सोया खाते हैं और धरती का नुकसान कर रहे हैं।

क्या वीगन पालतू जानवर रख सकते हैं?

वीगनवाद के हिसाब से हमे ना किसी जानवर का शोषण करना चाहिए और ना ही उनका दुरुपयोग करना चाहिए। तो अब इस प्रश्न के उत्तर के बारे में कई विचार और तथ्य है।

जैसे कि पहला तथ्य यह है कि क्या हमने उस जानवर को हमारे मनोरंजन के लिए पाला है? अगर हाँ तो यह गलत है क्योंकि जब हम इन्हें अपने मनोरंजन के लिए पालते हैं तो वह जानवर हमारे घर में कैदी बनकर रह जाते है। अगर आपके पास पालतू जानवर है तो उसकी स्वतंत्रता आप उससे छीन ना ले इसका भी ध्यान रखना है, क्योंकि वह जानवर उसका प्राकृतिक जीवन कहीं और अच्छे से जी सकता है। 

दूसरा विचार है की हमें वह जानवर कहाँ से मिला है? अगर आपने उस जानवर को खरीदा है तो, वह अनैतिक है क्योंकि जहाँ से आपने वह जानवर खरीदा है वहाँ जानवरों का व्यापार होता है। उनका अभिजनन (ब्रीडिंग) किया जाता है और वह बहुत क्रूर प्रक्रिया है। 

तीसरा विचार, आपने वह जानवर किस देश से लाया है? अगर हम उस जानवर को दूसरे देश से खरीद के लाए है, तो यह गलत है। हमारे जो स्थानीय जानवर है उनकी मदद करें, उन्हें अपनाएँ ।

वीगनवाद में पालतू जानवरों के बारे में इस तरह के कई विचार आते है परंतु पालतू जानवरों के बारे में ऐसा कोई कड़ा नियम नहीं है। अगर आपको कोई बेसहारा जानवर मिला है और आप उसका ध्यान रखना चाहते हैं तो रखें। परंतु किसी भी जीव को केवल अपने मनोरंजन और खुशी के लिए खरीदना गलत है। जानवर को अपने मनोरंजन के लिए खिलौना समझकर न रखें इस सभी में उस जानवर की भी खुशी होनी चाहिए और उनका ध्यान रखना भी हमारा दायित्व है। हम उन्हें कैसे पाल रहे हैं उसका भी काफी महत्व है, ऐसा नहीं की वो जानवर बीमार, बूढ़े और अपंग हो जाने पर उन्हें घर से निकाल दिया – यह गलत है।

रेगिस्तान और बर्फीले क्षेत्र में रहने वाले लोग वीगन कैसे हो सकते हैं?

इसका उत्तर दो भागों में दिया जा सकता है,

पहली बात वीगनवाद यह उन लोगों के लिए है जो की किसी समूहों, समाज, गाँव और शहर में रहते हैं l हम अपनी लालची जरूरतों के लिए जानवरों का व्यापार, औद्योगिक पशुपालन करते हैं, जहाँ उनका शोषण होता है उन पर क्रूरता की जाती है।  तो इसलिए वीगनवाद हमारे जैसे सभ्य समाज के लोगों के लिए हैं जिन्हें आसानी से जीने के सारे संसाधन उपलब्ध है तो हम एक करुणा भरा जीवन वीगनवाद के साथ जी सकते हैं।

अब उन लोगों की बात जो रेगिस्तान और बर्फीले क्षेत्र में रहते हैं, अगर उनको मौका मिले तो वह वैसी जगहों को छोड़कर तुरंत हमारी जैसे सभ्य समाज में आकर रहने लगे, जहाँ उन्हें सुरक्षा मिले और सब कुछ आसानी से उपलब्ध हो। परंतु किसी कारणवश वे यहाँ नहीं आ पाए तो बर्फीले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आबादी बहुत कम रहती है और अगर उनके पास खुद को जिंदा रखने के लिए कोई और विकल्प नहीं, उन्हें किसी जीव को मारना ही पड़ेगा नहीं तो वह खुद मर जायेंगे, तो वीगनवाद यह कहता है की अपने जीवन के लिए अगर आपके पास कोई विकल्प नहीं है तो आप खुद के जीवन को सबसे पहले रखें और आज के दौर में रेगिस्तान में कोई नहीं रहता है बल्कि अब तो रेगिस्तानों में भी व्यापार किया जाता है, दुनिया भर के जगहों से सामान आता है।

परंतु अगर आप ऐसे किसी जगह पर है जहाँ आपको जीवित रहने के लिए किसी और जीव को मारना पड़ेगा तो आप अपने जीवन के बारे में पहले सोचे। परंतु हमारे जैसे सभ्य समाज में जीने वाले लोग यह वीगनवाद का पालन आसानी से कर सकते हैं।

यदि सच्चे वीगन हो तो मोबाइल का उपयोग बंद करो, क्योंकि 5G (विकिरण) जानवरों पर हानिकारक प्रभाव करता है।

तो पहली बात अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि 5G (विकिरण) जानवरों पर हानिकारक प्रभाव करता है और यह टेक्नोलॉजी अभी तक भारत में आई भी नही है और जब भी आ जाएगी तब उसके होने वाले दुष्प्रभाव हमें पता चल ही जायगा।

दूसरी बात, 5G यह मानव समाज के प्रगति के लिए बहुत ही आवश्यक है। 5G यह 4G से 1000 अधिक तेज है और यह दुनिया में बहुत बड़ी तब्दीली लाएगा। हमारे काम करने के तरीके, ऑटोमेशन और जो चीजें हम सिर्फ सिनेमा में देख सकते हैं वो हम सच में कर पाएंगे। तो अगर 5G के वजह से तकलीफ हो रही है तो आप यह समझें कि यह इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव है यह जानबूझ के जानवरों को पीड़ा देने के लिए नहीं बनाया गया है और इंसान ने जब भी प्रगति की है तब किसी न किसी जीव, इंसान और निसर्ग को अप्रत्यक्ष तकलीफ हुई है। जैसे कि इंसान ने शहर बनाया, बांध बनाया जीव, निसर्ग को तकलीफ हुई है ही। तो वीगनवाद ऐसे अप्रत्यक्ष प्रभावों के बारे में बात नहीं करता है क्योंकि फिर जीवन जीना बहुत ही मुश्किल हो जायेगा। वीगनवाद उस प्रत्यक्ष हानि की बात करता है जो हम जानवरों को जानबूझ कर पहुंचते हैं। जैसे की हम जानवरों को पाल के ,बड़ा करके फिर बाद ने उन्हें मार के खा रहे हैं या फिर मधुमक्खियों का छत्ता बरबाद करके जबरदस्ती उनका मध छीन लेना तो यह गलत है यह सब न करें क्योंकि आप उन्हें प्रत्यक्ष हानि पहुंचाने के लिए कर रहे है।

अगर सब वीगन बन गए तो, क्या शाक पर्याप्त होगी?

लोगों को यह बात समझनी होगी कि उद्योगों ने इस तरह से भ्रामक विपणन (डेसिपेटिव मार्केटिंग) किया है और उसमें हमें सिर्फ गलत ही बातें बताई गई है।

जिन जानवरों को हम कृत्रिम रूप से अभिजनन (ब्रीडिंग) करके पैदा करते है या पालते हैं वो करोड़ों की संख्या में होते हैं और वह सारे जानवर शाकाहारी हैं तो उन्हें अनाज ही खिलाना पड़ता है। उन्हें खिलाने के लिए हमने कई जंगल काटकर करोड़ों टन अनाज उगाया हैं ताकि हम उन्हें साल भर या ६ महीने तक भरपूर खाना खिला सकें और फिर हम उन्हें मार के खा सके। लगभग यह सारे जानवर हम से १० से १५ गुना अधिक अनाज खाते हैं। तो हमारे माँस खाने की वजह से १० से १५ गुना और अधिक अनाज इस्तेमाल होता है। अगर सभी लोग वीगन बन जाए तो हमें इतना अनाज उगाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। भुखमरी मिट जाएगी, कई जंगल, पानी और हमारे कई संसाधन भी बच जाएंगे।

वीगन होना महंगा और प्रतिबंधात्मक है।

बहुत सारे लोग यह कहते हैं की वीगन होना महंगा और प्रतिबंधात्मक है, परंतु सच में वीगनवाद बहुत ही सस्ता है। क्योंकि वीगनवाद आपको घी, दूध, पनीर, अंडे, मछलियां, चीज, बटर, माँस ऐसे महंगे उत्पाद खाने से मना करता है उसके बदले आपको कहीं भी, किसी भी बाजार में आसानी से मिलने वाले सब्जी, अनाज, फल खाने के लिए प्रोत्साहित करता है। आपको कोई यह नहीं कहता है की कोई महंगा या बाहर के देश से मंगाया हुआ वीगन उत्पाद खाए बल्कि इसके बदले आप कोई भी सस्ता वनस्पति आधारित आहार खा सकते हैं।

इन पशु उत्पादों को छोड़ने के बाद आप और स्वतंत्र महसूस करेंगे क्योंकि आप नैतिकता और अपने विश्वास के साथ अपना जीवन जी रहे हैं। आपको ऐसा कोई उत्पाद इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं है जिसमें क्रूरता हो जैसे कि ऊन, शहद, दूध, दही, पनीर, चमड़ा इत्यादि। इसके बदले आप क्रूरता मुक्त उत्पाद का इस्तेमाल करें जो की आपको कहीं भी आसानी से मिल जायेंगे। आज इंटरनेट का दौर है आप ऑनलाइन उत्पाद माँगा सकते है। वीगनवाद एक सस्ती, नैतिकता और सेहत से भरपूर जीवन शैली है।

१०० प्रतिशत वीगन होना बहुत मुश्किल है, इसलिए हम कभी भी वीगन नहीं बन सकते।

यह सही बात है की हम १०० प्रतिशत वीगन नहीं बन सकते हैं। जैसे की हम पूरा दिन चुप नहीं बैठ सकते या फिर गुस्सा किए बिना नहीं रह सकते है। या कभी कभी हमें झूठ भी बोलना पड़ता है, कभी कुछ चोरी भी करनी पड़ जाती है क्योंकि यह जिंदगी है परंतु इसका अर्थ यह तो नही की हम हमेशा झूठ ही बोलते रहे या चोरी करते रहें।

माना वीगन होना मुश्किल है परंतु इस वजह से हम कोशिश भी न करें तो यह गलत है और इसका अर्थ यह भी है की हमे और भी ज्यादा ध्यान रखने की और एक संवेदनशील जिंदगी जीने की जरूरत है। जब कुछ मना कर सकते है तो मना करें , देखे किस चीज की हमें सच में जरूरत है और किस चीज को हम जिंदगी से निकाल सकतें है। तो इस तरह से हमें अधिक जागरूक होने की जरूरत है और इस वजह से हम ज्यादा अच्छे, करुणामय, और नेक इंसान बन पाएंगे।

एक व्यक्ति से कोई फर्क नहीं पड़ता है, इसलिए मेरा वीगन होना जरूरी नहीं है।

मेरे अकेले के वीगन होने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैं वीगन नहीं बनूंगा, यह बहाना बहुत लोग इस्तेमाल करते है। परंतु आपके अकेले के वीगन बनने से भी बहुत फ़र्क पड़ता है। आंकड़े बताते है, की अगर एक इंसान वीगन बन जाए तो वह साल भर में ३०० से अधिक जानवरों की जान बचा सकता है। भले ही हम ३०० जानवरों की जान न बचा पाए परंतु अगर हमारे वजह से ५० जानवरों की भी जान बच रही है तो वह बहुत बड़ी बात है। हम इंसानों का एक दूसरे पर जो प्रभाव पड़ता है उस वजह से और शायद हमारी अच्छाई देख कर और भी १० लोगों को लगे कि उन्हें भी वीगन बनना चाहिए और उन १० लोगों को देख के और लोगों को लगे की वीगनवाद को अपनाना चाहिए तो ऐसे ही आप अकेले की वजह से कई हजार लोग वीगनवाद को अपना लेंगे। एक कहावत है ना, मैं अकेला ही चलता रहा मंजिल की ओर लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया। जब तक हमें लगता रहेगा की मेरे अकेले से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है तब तक कुछ नहीं बदलेगा, तो एक बड़े और अच्छे बदलाव के लिए हमें सबसे पहले खुद को बदलना होगा और एक दूसरे को देख के लोग बदलेंगे, सुधरेंगे। अपने आप में विश्वास रखें, आप बहुत जरूरी है।

जानवर एक दूसरे को खाते है, पहले उनसे कहें कि वो वीगन बने।

जिन जानवरों की हम बात कर रहे हैं वो जंगली जानवर है, पशु हैं जंगलों में रहते हैं और हम सभ्य इंसान है। हमारे समाज में कानून व्यवस्था, नियम है और हम इंसानों के पास दिमाग है, दिल है। जानवर उनके पशु प्रवृत्ति के हिसाब से आचरण करते हैं परंतु हम इंसानों के पास दिमाग है हम सब काम सोच समझकर करते हैं। जैसे की एक शेर किसी दूसरे शेर को मारता है तो वह उसके सारे बच्चों को भी मार देता है सो अगर कोई आपके बच्चों को मारे तो आप यह कह कर टाल देंगे कि हां यह सब चलता है क्योंकि शेर भी तो यही करते हैं, नहीं आप ऐसा नहीं कहेंगे आप कहेंगे कि हम सभ्य समाज में रहते है हमारे समाज में कानून है , न्याय व्यवस्था है। तो जानवरों का कानून और हमारा कानून बहुत अलग है और जानवरों को कुदरत ने ही ऐसा बनाया है, की वो शाकाहार पर जीवित नहीं रह सकते अगर वो शाकाहार खाने जायेंगे तो बिचारे मर जाएंगे परंतु हम इंसान वनस्पति आधारित आहार खा भी सकते हैं और पचा भी सकते हैं। 

हम वनस्पति, अनाज उगा सकते हैं हमारे पास कई विकल्प है खाने के लिए परंतु इन बिचारे जानवरों के पास और कोई विकल्प नहीं है। जंगलों में भी जिन जानवरों का वह शिकार करते हैं उन्हें कैद करके या शोषित करके नहीं रखा जाता है और वह सिर्फ भूख लगने पर ही शिकार करते हैं और शिकार करके वह सब कुछ खाते हैं परंतु हम सब कुछ नही खाते हम उन में से चुनते की क्या खाने लायक है और क्या नहीं हैं, क्योंकि हम सभ्य है। तो अपने आप की जंगली जानवरों के साथ तुलना करके अपनी बेइज्जती ना करें।

अगर हर कोई वीगन बन जाएगा, तो किसानों का क्या होगा?

जिन जानवरों की हम बात कर रहे हैं वो जंगली जानवर है, पशु हैं जंगलों में रहते हैं और हम सभ्य इंसान है। हमारे समाज में कानून व्यवस्था, नियम है और हम इंसानों के पास दिमाग है, दिल है। जानवर उनके पशु प्रवृत्ति के हिसाब से आचरण करते हैं परंतु हम इंसानों के पास दिमाग है हम सब काम सोच समझकर करते हैं। जैसे की एक शेर किसी दूसरे शेर को मारता है तो वह उसके सारे बच्चों को भी मार देता है सो अगर कोई आपके बच्चों को मारे तो आप यह कह कर टाल देंगे कि हां यह सब चलता है क्योंकि शेर भी तो यही करते हैं, नहीं आप ऐसा नहीं कहेंगे आप कहेंगे कि हम सभ्य समाज में रहते है हमारे समाज में कानून है , न्याय व्यवस्था है। तो जानवरों का कानून और हमारा कानून बहुत अलग है और जानवरों को कुदरत ने ही ऐसा बनाया है, की वो शाकाहार पर जीवित नहीं रह सकते अगर वो शाकाहार खाने जायेंगे तो बिचारे मर जाएंगे परंतु हम इंसान वनस्पति आधारित आहार खा भी सकते हैं और पचा भी सकते हैं। 

हम वनस्पति, अनाज उगा सकते हैं हमारे पास कई विकल्प है खाने के लिए परंतु इन बिचारे जानवरों के पास और कोई विकल्प नहीं है। जंगलों में भी जिन जानवरों का वह शिकार करते हैं उन्हें कैद करके या शोषित करके नहीं रखा जाता है और वह सिर्फ भूख लगने पर ही शिकार करते हैं और शिकार करके वह सब कुछ खाते हैं परंतु हम सब कुछ नही खाते हम उन में से चुनते की क्या खाने लायक है और क्या नहीं हैं, क्योंकि हम सभ्य है। तो अपने आप की जंगली जानवरों के साथ तुलना करके अपनी बेइज्जती ना करें।

हमें गाय को कैसे रखना चाहिए?

अगर आप गाय को बिल्कुल अपनी माँ के तरह मानते हैं तो फिर जिस तरह से आप अपने माँ की सेवा करते हैं उसी तरह उतने ही लगन के साथ इनकी सेवा करें। जैसे दूध पी लेने के बाद आप अपनी माँ को छोड़ तो नहीं देते हैं तो वैसे ही बिल्कुल अंतिम समय तक आपको गायों की देखभाल करनी चाहिए। अगर आप उनके बच्चों को भी घर से निकाल रहें हैं तो ये गलत बात हैं। केवल आपको दूध मिलता रहें इसलिए आप गायों को बार- बार गर्भवती करके उसकी २०- २५ साल की जिंदगी को ६-७ सालों की जिंदगी में सीमित कर देते हैं। तो फिर आप सिर्फ कहने को गायों को माँ कह रहें है आपने उसे माँ बुलाने के कर्तव्यों को पूरा नहीं किया है। यदि आप अहिंसा को केंद्र में रखते हुए दिशा-निर्देश और विचारधारा तैयार करें और फिर भी पूरी तरह से आप एक गाय की देखभाल करने में सक्षम हैं तो यह वास्तव में तपस्या के योग्य है और अगर आप इस तरह से उनकी सेवा नहीं कर सकते तो कहीं न कहीं पाप तो हो ही जाएगा और शायद आजकल के समय इतनी अच्छे से देखभाल करना ये नामुमकिन और मुश्किल है।

क्या वीगन खाना बनाने के लिए नए तरीके सीखने होंगे?

अगर देखे तो यह सवाल सबसे ज्यादा बाहर देश के लोगों को होता है क्योंकि उनके आहार में माँस होना बहुत ही साधारण बात है परंतु एक भारतीय होने के नाते हम शाकाहारी खाना बनाना बहुत आसानी से जानते हैं और हमारे आहार में ज्यादातर शाकाहार ही शामिल है। बस हमें अपने शाकाहारी भोजन से घी, बटर, चीज, पनीर और दूध को निकालना है और इसके बिना भी हम बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बना सकते हैं। हम भारतीय नए तरह का भोजन बनाने में काफी अच्छे है, तो हम भोजन में अलग प्रकार के प्रयोग कर सकतें है और कई नए विकल्पों का इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे कि दूध के बदले, बादाम का दूध, नारियल का दूध, सोया मिल्क इसका इस्तेमाल करना है बस स्वाद में थोड़ा परिवर्तन आ जाएगा परंतु आपको नया कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारतीय खाना ज्यादातर वीगन ही है।

वीगन होने के नाते, हम अपने पालतू जानवरों को क्या खिलाएँ?

आपने उस जानवर का ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली है तो आप उस जिम्मेदारी को अच्छे से निभाए। आप अपने पालतू जानवर को वह खिलाएं है जिसमें उसकी खुशी हो, जिससे वह स्वस्थ रहे। क्योंकि  वीगनवाद यह हम इंसानों के लिए है ना की जानवरों के लिए। 

परंतु अगर आप के पालतू जानवर को वीगन खाना खाने से कोई तकलीफ नहीं हो रही है तो आप उसे वीगन खाना दे सकते हैं, जैसे कि कुत्तों को वीगन खाने से कोई तकलीफ नहीं होती है, उनकी सेहत अच्छी बनी रहती है और उनका वीगन खाना बाजार में आसानी से उपलब्ध भी है। 

परंतु बिल्लियां यह प्राकृतिक रूप से वीगन खाना नहीं खा सकती क्योंकि उन्हें ‘टावरिन (अमीनो एसिड)’ चाहिए रहता है जो की उन्हें नॉनवेज खाने से ही मिलता है तो अगर हम बिल्ली को वीगन खाना देंगे तो उन्हें बहुत तकलीफ होगी और उनके सेहत के लिए भी अच्छा नहीं रहेगा। परंतु अगर आपको ऐसा कोई वीगन फूड मिल रहा है जिसमें ‘टावरिन (अमीनो एसिड)’ अलग से मिला हुआ हो और उससे बिल्ली की सेहत पर असर ना हो तो आप बिल्ली को वीगन खाना खिला सकते हैं। परंतु ध्यान रखे की वो बिल्ली आपकी जिम्मेदारी है तो उसके सेहत के साथ खिलवाड़ न करें। यह ध्यान में रखकर की आपने कौन सा जानवर पाला है, उस प्रकार का उसका खाना चुनें। 

क्या बैक्टीरिया और खमीर से बने उत्पाद वीगन है?

वीगनवाद का सिद्धांत यह कहता है की हमें किसी भी संवेदनशील जीव को हानि या पीड़ा नहीं देनी है। बैक्टीरिया और यीस्ट यह एकल कोशिका वाले जीव है तो इन में तंत्रिका प्रणाली (नर्वस सिस्टम) नहीं होता है, तो उन्हें कोई दर्द या तकलीफ नही होती है। यह यीस्ट और बैक्टीरिया हर जगह पर पाए जा सकते हैं जैसे की हवा, मेज, कुर्सी, हमारे शरीर यह हमारे दांतो, जुबान, खून, पाचन तंत्र में भी है, यह अपने आप ही पनपते हैं ना हम इन्हें मार सकते है और ना ही चबा कर खा सकते हैं। तो वीगनवाद के सिद्धांतों के अनुसार आप बैक्टीरिया और खमीर से बने उत्पाद खा सकते हैं।

क्या वीगन उत्पाद क्रूरता मुक्त है या क्रूरता मुक्त उत्पाद, वीगन है?

बहुत सारे उत्पादों का परीक्षण जानवरों पर किया जाता है इसलिए यह क्रूरता हुई क्योंकि इस वजह से जानवरों को बहुत पीड़ा और तकलीफ होती है। तो क्रूरता मुक्त उत्पाद वो है जिसका परीक्षण जानवरों पर न किया हो।

वीगन उत्पाद वो है जिसमें जानवरों से संबंधित कोई भी सामग्री न हो। परंतु ऐसा जरूरी नहीं है की वीगन उत्पाद यह क्रूरता मुक्त हो, या क्रूरता मुक्त उत्पाद यह वीगन हो।

जैसे की किसी खाने में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया हो तो वीगन नहीं है परंतु वह क्रूरता मुक्त है क्योंकि उसका परीक्षण जानवरों पर नहीं किया है और कोई उत्पाद जो वीगन सामग्री से बना हुआ है परंतु उसका परीक्षण जानवरों पर किया हो तो वह उत्पाद वीगन है पर क्रूरता मुक्त नहीं। तो अगर आप एक नैतिक चुनाव करना चाहते है तो आपको ऐसे उत्पाद ढूंढने होंगे जो वीगन और क्रूरता मुक्त दोनों ही हों।

क्या वनस्पति प्रोटीन के मुकाबले, पशु प्रोटीन संपूर्ण होता है?

प्रोटीन हमारे शरीर में माँस-तंतु (टिश्यू), माँसपेशी (मसल्स) का निर्माण करता है और हमारे शरीर को मजबूत बनाता है। प्रोटीन २२ अमीनो एसिड से बना हुआ है, उसमे से १३ अमीनो एसिड हमारा शरीर खुद ही बना सकता है परंतु बाकी के जो ९ अमीनो एसिड है उन्हें आवश्यक अमीनो एसिड कहा जाता है क्योंकि वो हमारा शरीर बनाने में असमर्थ है, कई लोगों के हिसाब से केवल पशु प्रोटीन में ही वो ९ अमीनो एसिड मिलेंगे और वनस्पति प्रोटीन में नहीं तो यह गलत धारणा है। अगर आप मटर, सोया, या हेम्प का इस्तेमाल खाने में कर रहे हो तो उनका प्रोटीन भी संपूर्ण है। ऐसा भी नहीं है की इन सभी में सभी अमीनो एसिड यह एक मात्रा में होते हैं।

इन सभी में अमीनो एसिड अलग अलग मात्रा में होते हैं और हमारे शरीर को भी अमीनो एसिड अलग अलग मात्रा में ही चाहिए होते हैं। हमारा शरीर यह बहुत ही परिपूर्ण है तो ऐसा जरूरी नही है की हम एक संपूर्ण प्रोटीन ही खाए। जैसे की अगर हमने दाल, रोटी खाई तो हमारा शरीर कुछ अमीनो एसिड वो दाल से ले लेगा और बाकी के रोटी से। वैसे भी हम जब भी खाना खाते है तो हम मेल मिश्रण कर के ही खाते हैं तो हमारा शरीर आवश्यक प्रोटीन को इन सब के मिश्रण से बना लेता है। अगर आपने बाजार या ऑनलाइन से वनस्पति आधारित प्रोटीन खरीदा है तो वो भी अलग अलग अनाजों के मिश्रण से बना हुआ होगा ताकि उसमें संपूर्ण अमीनो एसिड हो।

डेयरी के विकल्प।

हमें लगता है की दूध केवल गाय, भैंसों से आता है पर आज बाजार में कई वनस्पति आधारित डेयरी के विकल्प उपलब्ध है। जैसे की सोया का दूध, बादाम का दूध, नारियल का दूध, चावल का दूध और ओट्स का दूध और ये सब पौधों द्वारा प्राप्त किया जाता है। सोया और बादाम के दूध में संतृप्त वसा बहुत कम मात्रा में होता है और ये कोलेस्ट्रॉल और दुग्ध शर्करा मुक्त होते है। संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल वैसे भी हमारे सेहत के लिए अच्छे नहीं है और दुग्ध शर्करा का मतलब, दुग्ध शर्करा एक ऐसा एंजाइम है जो जानवरों के दूध में पाया जाता है और देखा जाए तो ६६% भारतीय जनता ये दुग्ध शर्करा असहिष्णु हैं। ३ में से २ भारतीय गाय के दूध को पचा नहीं पाते है और उन्हें कई शारीरिक तकलीफें जैसे की सूजन, पेट दर्द और अतिसार हो जाता है तथा दूध का रोज सेवन करने से आपको त्वचा रोग, जलन, सूजन आंत्र सिंड्रोम, ऑस्टियोपोरोसिस और ऐसी अन्य कई बीमारियां हो सकती हैं। बात रही प्रोटीन, कैल्शियम और बाकी सभी पोषक तत्वों की तो सोया के दूध में गाय के दूध इतना ही प्रोटीन है और बाकी सभी पोषक तत्वों और कैल्शियम ये आपको बड़ी आसानी से वीगन आहार और दूध से मिल जाएगा। वनस्पति आधारित दूध की सबसे अच्छी बात तो ये है की आप इसका इस्तेमाल खाना पकाने में भी कर सकते हैं। हर वनस्पति आधारित दूध के अपने अलग फायदे हैं। हर व्यक्ति को आहार, स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताएं और व्यक्तिगत पसंद के आधार पर ही वनस्पति आधारित दूध का चयन करना चाहिए। बस ये ध्यान में रखें की चाय या कॉफी बनाते वक्त इस दूध को उबाले नहीं बल्कि इसे हल्का गरम  करके चाय और कॉफी में डाल दे।

सोया और मटर दूध में सबसे अधिक प्रोटीन होता है। नारियल और बादाम के दूध में सबसे कम कैलोरी हैं। ओट्स और चावल के दूध में अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट है। आजकल वनस्पति आधारित दूध में पोषक तत्व अलग से मिलाएं जाते हैं। नैतिकता के अनुसार भी वीगन दूध एक बेहतर विकल्प है क्योंकि डेयरी उद्योग में इन बेचारे गाय, भैंसों को बहुत यातनाएं दी जाती है, उनके बच्चों को उनसे अलग कर दिया जाता है, नर बछड़ों को मार दिया जाता है और उनका हर साल कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है साथ ही ज्यादा दूध के उत्पादन के लिए उन्हें हार्मोन और ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं। जितनी जमीन हमें गायों को पालने और खिलाने में लगती है उससे कहीं गुना कम जमीन ये दूध के लिए ओटस और सोया को उगाने में लगती है और हमें ये भी समझने की जरूरत है की डेयरी दूध उत्पादन में सबसे अधिक पानी का इस्तेमाल होता है तो इसका मतलब वनस्पति आधारित दूध को अपना कर हम पानी और जमीन दोनों की बचत करते हैं। आज बाजार में अलग – अलग कंपनियों के ५० से भी ज्यादा वनस्पति आधारित दूध विकल्प उपलब्ध है। पर जरूरी नहीं है की आप बाजार से जाकर ही खरीदें आप इसे अपने घर पर भी बड़ी आसानी बना सकते हैं और ये काफी सस्ता, ताजा और अच्छा भी है। पर जरूरी नहीं है की आप डेयरी के इन विकल्पों को अपनाएँ अगर आपको पसंद है तो ही इसका सेवन करें नहीं तो कोई आवश्यकता नहीं है।

अगर भगवान ने इन जानवरों को खाने के लिए नहीं बनाया तो वह इतने स्वादिष्ट क्यों है?

पहली बात अगर आप माँस  कच्चा खाए तो आपको उल्टी हो जायेगी या फिर आप उसे थूक देंगे। कच्चा माँस  हमें थोड़ा भी अच्छा नहीं लगेगा और आपने जबरदस्ती करके उसे निगल भी लिया तो उसमें पनप रहे जंतु, गंदगी, जीवाणु इन की वजह से आप बीमार पड़ जाएंगे।

पेट खराब होना, बदहजमी और ऐसी कई तकलीफ हो सकती हैं। तो माँस  हमें कच्चा बिल्कुल नहीं अच्छा लगता है। वह हमें कई मसालों (हर्ब्स और स्पाइस) के साथ अच्छी तरह से पका कर परोसा जाता है इसलिए अच्छा लगता है। तो माँस  में यह स्वाद इन वनस्पति आधारित मसालों के वजह से आता है। आप वही मसाले सब्जियों पर लगा के खाए तो वो सब्जियां भी उतनी ही स्वादिष्ट लगेंगी ।

क्या हम "केज फ्री" या "रेंज फ्री" उत्पादों का सेवन कर सकते है?

“केज फ्री” या “रेंज फ्री” यह लेबल केवल मार्केटिंग के लिए बने हुए हैं। क्योंकि कुछ लोगों को ऐसा लगने लगता है कि हम जानवरों के साथ गलत कर रहें हैं, उन जानवरों के साथ क्रूरता हुई है तो ऐसे लोगों के मन की तसल्ली के लिए यह लेबल इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि वह लोग उनके उत्पाद खरीदें ।

केज फ्री, का अर्थ यह है की हमने इन जानवरों को किसी पिंजरे में कैद करके नहीं रखा था बल्कि यह जानवर किसी बड़े से गोदाम में लाखों की संख्या में जबरदस्ती भीड़ में रखे गए है। तो इन जानवरो के साथ इतनी भी क्रूरता नहीं हुई है तो आप निश्चिंत होकर यह उत्पाद खरीदे।

रेंज फ्री, का अर्थ है की यह जानवर न किसी पिंजरे में और न ही किसी गोदाम में रखे गए हैं, हमने उन्हें फार्म में घूमने फिरने की आजादी दी है और उसके बाद वह काटे और मारे गए हैं।

केज फ्री और रेंज फ्री इन लेबलों का काम केवल हमारे मन को तसल्ली देने का है ताकि हम बिना किसी चिंता के उनके उत्पाद खरीदें। पर क्रूरता तो क्रूरता ही है और हत्या तो हत्या।

जब हम जानवर नहीं मारते तो, दूध, चीज, अंडा सेवन करने में क्या गलत है?

डेयरी उत्पादों के वजह से जानवरो की मौत तुरंत नहीं होती है परंतु उसे केवल उसका शोषण करने के लिए, उनका इस्तेमाल करने के लिए उन्हें जिंदा रखा जाता है, इसमें उनके साथ भयंकर क्रूरता की जाती है ।

एक मुर्गी से साल भर में २०० से ३०० अंडे का उत्पादन कराया जाता है जिस वजह से वह बेचारी मरने की कगार पर आ जाती है और जब उसकी अंडे की उत्पादकता कम हो जाती है, तो वह अंडा उद्योग में किसी काम की नहीं रह जाती इसलिए उसे मार दिया जाता है।

गाय को भी हर साल कृत्रिम रूप से गर्भधारण करवाया जाता है ताकि उससे जितना हो सके उतना दूध का उत्पादन कर लिया जाए और जब वह ४ से ५ साल बाद डेयरी उद्योग में किसी काम की नहीं रह जाती तो उसे कत्लखाने भेज दिया जाता है। तो यह जानवर भले उसी समय न मरे परंतु ये जो उत्पाद जैसे की दूध, अंडा, चीज और घी हम खरीद रहे है इस वजह से वह मरने की तरफ जा रहे हैं तो उनकी मौत के लिए जिम्मेदार हम ही हैं।

पशुओं को खाना मेरा व्यक्तिगत चयन है, तो आप इसे गलत कैसे कह सकते हो?

तो यह बात तो एक हद तक सही है कि आप जब बाजार या मार्केट में जाते हैं तो अपने पैसों से जो चाहिए वो खरीद कर खा सकते हैं तो इसमें गलत कुछ नहीं है परंतु एक इंसान होने के नाते जब भी हम कोई व्यक्तिगत चयन करते हैं तो हमारे कुछ मापदंड होते है जिन पर खरा उतरने के बाद ही हम किसी भी चीज का चयन करते हैं।

जैसे की, समझिए हम किसी बस से सफर कर रहे है, तो एक बूढ़ा जो सीट पर बैठने वाला था उसे धक्का मार के हम वहाँ बैठ गए यह हमारा निजी चयन हुआ परंतु यह लोगों के नजरों में नैतिक नहीं होगा और हम जैसे चाहे वैसे भी नहीं बैठ सकते है हमे एक सभ्य इंसान की तरह ही बैठना होगा। आप जहाँ से चाहे वहाँ से भी यह बस नहीं लेकर जा सकते क्योंकि हम अपने निजी जरूरत के लिए किसी और को मजबूर नहीं कर सकते हैं। अभी हम जब अपने घर जाते है तो अगर उसके आस पास के घर खुले हो तो आप उन में बिना पूछे घुस जाते हैं क्या? नहीं ना, क्योंकि वह किसी और के घर है और अगर हम ऐसा कर रहें हैं तो वह उसके अधिकारों का उल्लंघन है। तो हम एक सभ्य इंसान होने के नाते जब भी कोई व्यक्तिगत चयन करते हैं कई सारे मापदंडों को दिमाग में रखकर करते हैं। तो हम जब भी किसी बाजार या मार्केट में कोई  पशु उत्पाद या माँस  खरीदने जाएंगे तो यह हमारा फर्ज है कि हम सोचे, कि क्या पशु उत्पाद या माँस खरीदने का मुझे हक है? क्योंकि यह जो पशु उत्पाद है या माँस  है यह भी कोई जिंदा जीव हुआ करता था जो कि अपने जीवन में खुश था। क्या उसे मेरी वजह से मारा गया है? क्या किसी को मारना नैतिक है? क्या उसके जिंदगी में हस्तक्षेप हुआ है? क्या उसके अधिकार छीने गए है? क्या उसे शोषित किया गया है? और इन सारे सवालों का जवाब हाँ है तो यह पशु उत्पाद या माँस हमारा व्यक्तिगत चयन हो ही नहीं सकता क्योंकि यह हमारे सारे मापदंडों में नहीं बैठता है।

परंतु कुछ लोगों को अभी भी यह लगता है कि यह सारे मापदंड जानवरों के लिए नहीं है, उन्हें कुछ महसूस नहीं होता वह निर्जीव जीव की तरह है, जैसे की इन जानवरों के पास कोई अधिकार ही नहीं है इन्हें हमने मेज और कुर्सी की तरह समझ रखा है ।

परंतु अब जमाना सभ्यता और अच्छाई की ओर बढ़ चला है, तो अब मानव केवल अपनी स्वार्थी जरूरतों के बारे में न सोचकर, सभी जीवों के बारे में सोचने का वक्त आ गया है।

अगर हम पशु उत्पादों का सेवन संयम में करें, तो फिर पशुओं के लिए यह उत्तम है?

कई लोगों को लगता है कि यह जो पशुओं के साथ ये हो रहा है वह गलत है तो वह यह तय करते है की वह पशु उत्पाद या माँस  का सेवन संयम से करेंगे मतलब हफ्ते में एक या दो बार ही खाए तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। यानी हम यह मानते हैं कि पशुओं के साथ गलत हो रहा है, उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है फिर भी हम उसे बंद करने के बजाए सिर्फ उसे कम करने की बात कर रहे हैं।

जैसे कि कोई इंसान जो खून या बलात्कार करता हो और उसे पता है कि वह गलत कर रहा है तो वह कहता है कि अब से मैं यह काम कम करुंगा तो अब से मैं साल में सिर्फ एक ही खून करूंगा तो क्या यह सही होगा? तो क्या कोई गलत काम कम करने से वह गलत नही रह जायेगा?

कुछ लोगों यह भी कहते कि पशुओं को खाने से जीवन चक्र बना रहेगा परंतु अगर आप देखे तो यह अब जीवन चक्र नहीं रह गया है यह अब हमारे स्वार्थ का चक्र बन चुका है और अगर आप जीवन चक्र का संयम से पालन करना चाहते है तो यह तब मुमकिन होगा जब हम इन जानवरो के साथ जंगल में ही रहें, तो कभी वो हमारा शिकार करे और कभी हम उनका। परंतु हम जानवरो को कृत्रिम रूप से उगाते हैं, उनका व्यापार करते हैं, हमारे बाजार और मार्केट में यह बेचे जाते हैं तो इन्हें संयम से खाकर भी कोई फायदा नहीं है क्योंकि उनका बड़े पैमाने पर उत्पादन चालू ही है। हां अपने आप पर संयम रखना यह पहला कदम हो सकता है कि आज मैं यह नहीं खाऊंगा, आज में माँस या पशु उत्पाद को नहीं खाऊंगा परंतु हमारा अंतिम लक्ष्य यह इन सब को त्यागना ही होना चाहिए।

क्या हम दूध का व्यापार कर सकते हैं ?

शास्त्रों के अनुसार दूध का व्यापार करना निषेध है और उसमें कहा गया है की दूध और दूध से बने पदार्थों को बेचा नहीं जाना चाहिए क्योंकि अगर आप गाय को माँ मान रहें है तो उसे उतना सम्मान देना आवश्यक है और उससे प्राप्त पदार्थों को आप पूजा में शामिल कर रहें है तो दूध और उसके पदार्थों को बेचने का सवाल ही नहीं उठना चाहिए। यदि आप पुराणों या स्मृतियों को पढ़े तो उनमें गोरस यानी दूध की बिक्री बिल्कुल निषेध है, ये न करें, ये पाप है। अगर आप मनु स्मृति में भी पढ़ ले तो उसमें कहा गया है की, अगर कोई तीन दिन भी गाय का दूध बेच देता था तो उसकी सारी पवित्रता समाप्त हो जाती है। आप इस दूध को खरीद सकते हो क्योंकि आपके पास पैसे है तो इसलिए आपका उस दूध पर अधिकार नहीं बनता है। मां के दूध पर पैसे से तो अधिकार नहीं जमाया जा सकता है। अगर ये निषेध है तो जो ये बेच रहा है और जो ये खरीद रहा है दोनों ही गलत कर रहें हैं।

हमारे जानवर परिवार के सदस्यों की तरह हैं, क्या उनके दूध, ऊन, अंडे का उपयोग कर सकते है?

तो सबसे पहले आप यह समझे कि परिवार का सदस्य क्या होता है ।

उदाहरण के तौर पर जब हम छोटे होते हैं तो हमारे परिवार में हमें बिना कुछ काम किए, बिना कोई मदद किए खाना मिलता है, रहने को मिलता है और जब हम बीमार होते हैं तब हमारी देखभाल भी की जाती है। हमारे परिवार में जो बुजुर्ग है हम उनकी भी देखभाल करते हैं ऐसे नहीं कि वह कोई काम के नहीं रह गए तो उन्हें घर से निकाल दिया और ऐसा भी नहीं है कि हमने उन्हें अपनी जिंदगी में उन्हें किसी फायदे के लिए रखा है परंतु यह जितने भी जानवर है मुर्गी,गाय, बकरी इन सब से हमें कोई ना कोई फायदा है। अगर आप उन्हें परिवार के सदस्य की तरह रखना चाहते है तो ऐसा क्यों नहीं करते की अपने परिवार के सदस्य के तौर पर एक बैल को अपने घर पर रख ले, जिसे आप ऐसे ही प्यार से खिला पिला रहे हैं पर आप उससे काम नहीं करवाते। आपने घर में एक चिड़िया को पिंजरे में बंद करके रखा है आप कहते हैं कि वह आपके परिवार का सदस्य है परंतु क्या आप अपने परिवार के सदस्यों को किसी पिंजरे में कैद करके रखेंगे? यह आपने अपनी खुशी के लिए किया है, आप उसकी स्वतंत्रता और इच्छा के बारे में नहीं सोच रहे हैं।

कई लोग यह बैल और गायों की पूजा करते हैं परंतु उस गाय या बैल को क्या फर्क पड़ता है कि आप उनकी पूजा करते हैं। पूरा साल आप उनसे काम करवाते हैं, उनको पीड़ा देते हैं और अचानक से एक दिन आप उनकी पूजा करते हैं तो यह सब आप सिर्फ अपने मन को तसल्ली देने के लिए करते हैं की हमने सिर्फ बुरा नहीं किया हम उस बैल या गाय की इज्जत भी करते है। अगर आंकड़ों की बात करें तो भारत बीफ (गाय के माँस) का सबसे ज्यादा निर्यात करने वाले देशों में से एक है तो यह सब जो काटे गए जानवर है, वो क्या परिवार के सदस्य थे?

हम सिर्फ उन्हें अपने परिवार का सदस्य कहते है पर मानते नही है क्योंकि एक परिवार के सदस्य को जो अधिकार होते हैं वो सब जानवरों को नहीं है। कई सालों तक हमारे साथ, हमारे आसपास रहने की वजह से हमें उन जानवरों से लगाव हो सकता है परंतु इसका अर्थ यह नहीं की उसे हमने अपने परिवार के सदस्य जैसा माना है। एक लगाव जरूर रहता है क्योंकि कभी कभी उसके अंडे, दूध के वजह से हमारा घर चलता है। हमने जानवरों को अपनी स्वार्थी जरूरतों के लिए पाल के रखा है ना की इसलिए की वो हमारे घर का हिस्सा है।

आप लोग क़साईख़ाने को बंद क्यों नहीं करवाते?

YvCare संस्था जागरूकता फैलाने का काम करती है और कुछ भी होने से पहले जागरूकता और ज्ञान सबके पास होना बहुत आवश्यक है और यही एक बड़े बदलाव के ओर हमारा पहला कदम होगा।

YvCare संस्था भारत में वीगनवाद के प्रति जागरूकता, ज्ञान फैलाने का काम कर रही है। तो एक अच्छे और स्थायी बदलाव की ओर सबसे पहला कदम जानकारी और ज्ञान देने का ही होता है। हम सब कुछ तो नहीं कर सकते और अगर हम सब कुछ करने की कोशिश लगें तो हम यह काम नहीं कर पाएंगे और देखा जाए तो जागरूकता और ज्ञान की भारत में बहुत आवश्यकता है क्योंकि भारत में लोग वीगनवाद के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं। हम आज नींव मजबूत करेंगे तो कल एक अच्छी दुनिया का निर्माण कर पाएंगे।

क्या वीगन पालतू जानवर रख सकते हैं?

वीगनवाद के हिसाब से हमे ना किसी जानवर का शोषण करना चाहिए और ना ही उनका दुरुपयोग करना चाहिए। तो अब इस प्रश्न के उत्तर के बारे में कई विचार और तथ्य है।

जैसे कि पहला तथ्य यह है कि क्या हमने उस जानवर को हमारे मनोरंजन के लिए पाला है? अगर हाँ तो यह गलत है क्योंकि जब हम इन्हें अपने मनोरंजन के लिए पालते हैं तो वह जानवर हमारे घर में कैदी बनकर रह जाते है। अगर आपके पास पालतू जानवर है तो उसकी स्वतंत्रता आप उससे छीन ना ले इसका भी ध्यान रखना है, क्योंकि वह जानवर उसका प्राकृतिक जीवन कहीं और अच्छे से जी सकता है। 

दूसरा विचार है की हमें वह जानवर कहाँ से मिला है? अगर आपने उस जानवर को खरीदा है तो, वह अनैतिक है क्योंकि जहाँ से आपने वह जानवर खरीदा है वहाँ जानवरों का व्यापार होता है। उनका अभिजनन (ब्रीडिंग) किया जाता है और वह बहुत क्रूर प्रक्रिया है। 

तीसरा विचार, आपने वह जानवर किस देश से लाया है? अगर हम उस जानवर को दूसरे देश से खरीद के लाए है, तो यह गलत है। हमारे जो स्थानीय जानवर है उनकी मदद करें, उन्हें अपनाएँ ।

वीगनवाद में पालतू जानवरों के बारे में इस तरह के कई विचार आते है परंतु पालतू जानवरों के बारे में ऐसा कोई कड़ा नियम नहीं है। अगर आपको कोई बेसहारा जानवर मिला है और आप उसका ध्यान रखना चाहते हैं तो रखें। परंतु किसी भी जीव को केवल अपने मनोरंजन और खुशी के लिए खरीदना गलत है। जानवर को अपने मनोरंजन के लिए खिलौना समझकर न रखें इस सभी में उस जानवर की भी खुशी होनी चाहिए और उनका ध्यान रखना भी हमारा दायित्व है। हम उन्हें कैसे पाल रहे हैं उसका भी काफी महत्व है, ऐसा नहीं की वो जानवर बीमार, बूढ़े और अपंग हो जाने पर उन्हें घर से निकाल दिया – यह गलत है।

क्या वीगनवाद एक धर्म है?

कुछ लोग जब वीगनवाद के बारे में हमारे उत्साह और जज्बातों को देखते हैं तो उन्हें लगता है कि यह हमारे लिए धर्म जैसा हो गया है। परंतु वीगनवाद कोई धर्म, मजहब, पंथ या संप्रदाय नही है ये एक हिंसा रहित जीवन शैली है। यह एक इंसान होने के नाते हमारी नैतिक जिम्मेदारी है की किसी भी जीव को हमारी वजह से कोई हानि या तकलीफ न हो और हम इस पृथ्वी पर कम से कम नुकसान किए बिना शांति से रहें।

यही वीगनवाद है, इंसानियत है और अच्छाई है। वीगनवाद हम सभी को यही सिखाता है की अपने खाने, रहने, और मनोरंजन के लिए किसी भी संवेदनशील प्राणी को नुकसान न पहुचाएं। 

तो वीगनवाद कोई धर्म नहीं है, आप किसी भी धर्म के हों बस अपने धर्म के साथ वीगनवाद को अपनाकर एक अच्छी, सुकून भरी जिंदगी जी सकते हैं।

जानवरों को खाना हमारी संस्कृति और परंपरा है, हमारे पूर्वजों ने भी खाया है।

कई लोगों को यह बात समझने की जरूरत है की बहुत सी धार्मिक किताबों में सती प्रथा, तीन तलाक, जातिवाद और गुलामी प्रथा यह सब मान्य है परंतु आज के समाज में यह सब मान्य नहीं है, अब इन सभी प्रथाओं को क्रूरता के रूप में देखा जाता है। कोई भी इंसान यह नहीं कहता कि यह पुरानी परंपरा है इसे ऐसे ही चलने दो क्योंकि हम वक्त के साथ सभ्य होते गए हैं। इंसान एक सभ्य समाज में रहता है और वक्त के साथ हम बदलाव लाते जाते हैं। हम जंगल या पुराने जमाने की बात नही कर सकते क्योंकि वह जंगल हमनें छोड़ दिया और पुराना वक्त बीत गया है। शायद हो सकता है कि कई १००० साल पहले जब न ही कोई सभ्यता थी ना ही अनाज उगाने का कोई तरीका था तो शायद लोग खुद की जान बचाने के लिए जानवरों को मारकर खाते थे परंतु अब हम इन जानवरों का व्यापार कर रहे हैं उन्हें पीड़ित और शोषित कर रहे हैं, हमनें राक्षस का स्वरूप ले लिया है। कोई भी सभ्य समाज और संस्कृति हमें इस क्रूरता की इजाजत नहीं देगी।